Mamta ki Pariksha - 1 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 1

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ममता की परीक्षा - 1

साथियों , नमस्कार ! एक तस्वीर पर आधारित छोटी सी कहानी लिखने की मंशा से शुरू हुई यह कहानी लगभग 140 कड़ियों तक विस्तार पा चुकी है । इसके बावजूद आपको यह कहानी बोर होने का मौका शायद ही दे । निवेदन है आप इसे नियमित पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराते रहें जिससे गलतियों को महसूस कर भविष्य के लेखन को सुधारा जा सके । सादर 🙏🙏🌺🌺
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ममता की परीक्षा ( भाग - १ )

रजनी कॉलेज में प्रथम वर्ष की छात्रा थी। बेहद खूबसूरत, गौरवर्णीय व छरहरे कद काठी की स्वामिनी उन्नीस वर्षीया रजनी खुद को किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी। पढ़ाई में भी वह अव्वल थी ही सो उसके इर्दगिर्द सहेलियों की संख्या भी पर्याप्त रहती थी। रईस बाप की इकलौती संतान होने की वजह से उसे सहेलियों पर अपना प्रभाव जमाये रखने के लिए किसी विषेश प्रयास की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। कॉलेज की कैंटीन में अक्सर उसकी तरफ से पार्टी का आयोजन होता जिसमें वह वहाँ मौजूद सभी छात्रों का बिल खुद ही भरती थी।
ऐसे ही एक दिन रजनी कॉलेज की कैंटीन में सभी छात्रों का बिल दे ही रही थी कि एक अंतिम वर्ष का छात्र अमर उठकर काउंटर पर पहुँच गया और अपनी बिल के पैसे देने लगा। रजनी की सहेली निशा ने उसे समझाया, "अरे रख भी लो अपने पैसे ! कहीं और काम आ जाएँगे। आज तो रजनी की पार्टी है। सबके बिल वही पे करनेवाली है।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद निशा जी, लेकिन इसका क्या करूँ कि मुझे किसी की पार्टी में बिना बुलाये शामिल होना गवारा नहीं और इस तरह से किसी का कुछ खाने की इजाजत मेरा जमीर मुझे नहीं देता। सॉरी निशा जी !" कहकर अमर काउंटर पर अपना बिल चुकाकर चलता बना। उसने एक बार पलटकर भी रजनी और निशा की तरफ नहीं देखा।
इस घटना ने रजनी के गुरूर को काफी ठेस पहुंचाई, सो अमर उसके दिलोदिमाग पर छा गया था।

साधारण कपड़ों में लिपटा रहनेवाला अमर पढ़ने में होशियार था। कॉलेज में पिता की रईसी पर मजा करनेवाले छात्रों की भीड़ से खुद को बचाये हुए अमर की किसी से गहरी दोस्ती नहीं थी। लेक्चर्स अटेंड करना और लाइब्रेरी में समय बिताने के अलावा वह कभी कभार अकेले ही कैंटीन वगैरह में भी दिख जाता था।

कॉलेज की लॉबी में कई बार रजनी का अमर से आमना सामना हुआ लेकिन हर बार उसकी तरफ देखे बिना अमर उसको नजरअंदाज कर यूँ गुजर जाता जैसे उसको जानता ही न हो। उसका यह रवैया रजनी के गुमान को ठेस पहुँचाने के लिए काफी था। कॉलेज में कई मनचले लड़कों की आहें सुनने की अभ्यस्त रजनी को अमर की यह बेरुखी भीतर तक झिंझोड़ देती।

'उसके एक ईशारे पर बिछ जानेवाले लड़कों के बीच यह अमर किस मिट्टी का बना हुआ है जो उसकी तरफ देखना भी गवारा नहीं करता ?' वह अमर के बारे में जितना सोचती वह खुद को उसके और करीब महसूस करती। अब तो दिन भर उसके ख्यालों में रहनेवाला अमर रात उसके सपनों में भी दस्तक देने लगा था। सपने में ही सही वह अमर से बातें करके खुश हो जाती, उसका मन मयूर खिल उठता।

धीरे धीरे यूँ ही दिन बीतते रहे। कॉलेज के प्रथम सत्र की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। दिवाली की छुट्टियाँ घोषित हो चुकी थीं। रजनी जैसे ही लाइब्रेरी के सामने पहुँची, उसे लाइब्रेरी से निकलता हुआ अमर दिख गया। संयोगवश आसपास कोई नहीं था। रजनी बाहर कॉलेज लॉबी में ही रुक गई। हमेशा की तरह अमर अपने आप में ही खोया हुआ सा रजनी की तरफ देखे बिना उसके करीब से गुजर ही रहा था कि अचानक रजनी के होंठ कंपकँपाये, "अमर जी ...जरा एक मिनट रुकिएगा प्लीज !"

उसकी आवाज सुनकर अमर के कदम मानो जमीन से चिपक गए हों। अपनी जगह पर खड़े खड़े ही उसने घूम कर रजनी की तरफ देखा। आज शायद उसने पहली बार रजनी के रूप और यौवन का दिदार किया था। शुभ्र धवल टॉप के साथ नीले स्कर्ट में रजनी बला की खूबसूरत लग रही थी। अमर ने पहली बार रजनी की रईसी के साथ तड़क भड़क से परे उसकी सादगी का भी दिदार किया था। मंत्रमुग्ध सा वह रजनी की तरफ देखता रहा कुछ पल और फिर नजरें झुकाकर धीमी आवाज में बोल पड़ा, "जी कहिये ! कुछ काम था मुझसे ?"

अब आगे क्या कहे रजनी को कुछ सूझ नहीं रहा था। उसकी घबराहट देखकर अमर के चेहरे पर मुस्कान उभर आई।
झेंपते हुए रजनी ने अमर से नजरें चुराते हुए कहा, "क्या मुझे आपका मोबाइल नंबर मिल सकता है, प्लीज ?"

"क्यों भला ? इसकी क्या जरूरत है ?" बेरुखी दर्शाते हुए भी अमर के चेहरे पर गहरी मुस्कान खिल उठी थी।

"वो क्या है न कि मैं मैथ्स में थोड़ी वीक हूँ। कोई प्रॉब्लम समझ में नहीं आया तो आपको तकलीफ दे सकती हूँ न ?" उसकी आँखों में झाँकते हुए रजनी भी मुस्कुराई थी।

" हाँ हाँ ! क्यों नहीं ? यू आर ऑलवेज वेलकम .मिस ......!" कहते हुए अमर शायद उसका नाम याद करने की कोशिश करने लगा।

"रजनी ! ...रजनी नाम है मेरा ..!" बताते हुए रजनी मुस्कुराई थी। अमर द्वारा बताया गया नंबर अपने फोन में सहेजते हुए उसकी मुस्कान और गहरी हो गई थी। नंबर सहेजकर शहद सी मीठी उसकी आवाज एक बार फिर गूँजी, "बहुत बहुत शुक्रिया आपका अमर जी !"

चेहरे पर बनावटी मुस्कान बिखेरते हुए अमर बोला, "अरे इसमें शुक्रिया की क्या बात है ? मुझे आपकी मदद करके खुशी होगी। आप कभी भी बेहिचक मैथ्स का कोई भी प्रॉब्लम मुझसे पूछिये।... I will try to solve it ."
और फिर अमर उसकी ओर देखे बिना ही बढ़ गया था आगे।

इधर लाइब्रेरी में बैठी रजनी के सामने किताब खुली हुई थी लेकिन उसकी नजरों के सामने किताब के पन्ने नहीं अपितु अमर का मुखड़ा बार बार उभर रहा था। लंबी कदकाठी, मजबूत जिस्म के साथ ही सुदर्शन चेहरा और सबसे ऊपर उसका शालीनता भरा व्यवहार रजनी के दिल को घायल कर गया था। उसने पहले ही मन बना लिया था कि आज वह उससे मिलते ही अपने दिल का हाल जरूर कह देगी, लेकिन उसे सामने देखकर वह अपना संतुलन खो बैठी थी और हड़बड़ाहट में उससे उसका फोन नंबर माँग बैठी थी।

अचानक उसके दिमाग में बिजली सी कौंधी, 'अरी बावली ! अब क्या फिकर है ? पुरानी फिल्में नहीं देखी क्या ? जब हीरोइन या हीरो अपने प्यार का इजहार चिट्ठियाँ लिखकर किया करते थे और कोई छोटा बच्चा उनके बीच मध्यस्थ का काम करता था ...और फिर उनके प्यार की कहानी आगे बढ़ती जाती और फिर हैप्पी एंडिंग ! माना कि आज चिट्ठियों का जमाना नहीं है, लेकिन ईमेल तो लिख ही सकते हैं न ! चलो ठीक है ईमेल ठीक से नहीं मालूम तो व्हाट्सएप किस दिन काम आएगा ? आज के युग में व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया का इतना बड़ा मंच तो बना ही है हम जैसे युवाओं के लिए और हम किसी भी तरह से इसका फायदा उठा सकते हैं। सामने कहने में संकोच भले हो इसके जरिये तो कह ही सकते हैं अपने मन की बात ! नहीं माना तो भी कोई बात नहीं, ज्यादा से ज्यादा अनफ्रेंड कर देगा या ब्लॉक कर देगा। अब चाहे जो हो उसने अपना फोन नंबर देकर मुझे बात करने का जरिया तो दे ही दिया है। देखें । आजमाने में हर्ज ही क्या है ?'

क्रमशः